कोई मोहोब्बत होता वो फ़क़त
तो दिल से निकल जाता
कोई होता वो जो दुश्मन-ए -जां
तो दिल से निकल जाता
वो जो मोहोब्बत भी था
और दुश्मन भी था
वो ना निकलता है,
ना भूलता है
ना चलता है संग, ना याद आता है
वो बस मुस्कुराता है
महसूस होता है शुक्राने सा
और कचोटता है ज़हर सा
ना जीता है ना मरता है
वो बस होता है,
सफ़र में
मील के पत्थर - सा
पीछे जिसके छूटा सारा जहाँ होता है
आगे जिसके बेपनाह बेशुमार ज़िन्दगी ;
बस होता नहीं कुछ तो
उसके, साथ नहीं होता
ना ठहरता है ना गुज़रता है
बस होता है,
वहीँ का वहीँ
वहीँ कहीं
पीछे... बहुत पीछे छूटे
मील के पत्थर सा
पहले प्यार , आख़िरी सीख़
और सबक़ की मोहर सा
पत्थर पे पत्थर से खिंची लक़ीर सा
मिसाल होने की पीर सा
क़ाफ़िर - सा, फ़क़ीर- सा
एक बार
जो उसके दर से बढ़ जाएँ क़दम
फिर ना उसकी कोई ज़रूरत होती है
ना अहमियत, ना ही कोई दरकार
होती है बस तो
दरारों में रोशनी मढ़ी
पनपती, उमड़ती, बढ़ती
एक बिलकुल ही नयी ज़िन्दगी
बहुत दूर ..बहुत परे.. बहुत पार
जहाँ से फिर कोई,
ना मुड़ता है
ना लौटता है
ना जुड़ता है
ना टूटता है
बस हो जाता है वो ख़ुद ,
बेमिसाल..नायाब
बेहिसाब... बेशुमार
बेख़ुद से ख़ुदी
ख़ुदी से ख़ुदा .........!!!
-सौम्या वफ़ा। ⓒ
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